मै भगवान पे भरोसा करता हूँ , मगर धर्मों पर नहीं ?

अभी एक कल्पना करते है की दुनिया में भगवान नहीं है , मानों की यहाँ बस हम ही है , और हम हमारे पूर्वजोसे आए है , किसी जीन्स ट्रांसफर प्रोसेस के द्वारा। और हमारी अगली पीढ़ियाँ भी इसी प्रकार या जाएंगी , और हम हमारी मेमोरी आगे आने वाले जनरेशन को ट्रांसफर करेंगे जैसे हमारी पिछली जनरेशन ने हमारे साथ किया था ।

क्या यह इतना बुरा है की हम आपस में झगड़े करें , आपस में प्रेम करना बंद करें ? परवाह करना बंद कर दें ?

या हम पल-पल जीना शुरू कर देते हैं और समझते हैं कि हमारे कार्य, हमारे शब्द, हमारे कर्म हमारे अपने स्वयं के हैं और इसलिए हमारी जिम्मेदारी है।

पर नहीं ऐसा कैसे चलेगा ? लोग इस तरह चलेंगे तो , कुछ धर्म के ठेकेदारोकी रोजी रोटी कैसे चलेगी ?

अपने आस-पास की दुनिया को देखो। ऐसी कई चीजें हैं जो गलत हैं और उन्हें बदलने की जरूरत है। उनके लिए भगवान को दोष देना बंद करो!

मगर ऐसी चीजें करने में स्वार्थ कुछ भी नहीं है । और उपरसे होने वाला विरोध बहुत कड़वा है । क्यूंकी पैसा असली को भी नकली बना सकता है । अऔर नकली को भी असली बना सकता है । असल में पैसे में नहीं मगर उससे होने वाले फ़ायदों के लिए आदमी लाचार हो पद है ।

और इसका फायदा कुछ मूढ़ अऔर धूर्त लोगोने अपने स्वार्थ के लिए किया है , इसलिए तथाकथित धर्म अब बहुत ही कठोर हो गए है ।

भगवान तो अब किसी के लिए जरूरी चीज नहीं रही , सबको अपना स्वार्थ दिखता है । और सामान्य जन मानस पे पैसे का इतना बोज डाल दिया है, अगर वो कुछ दिन काम ना करें तो उसे खाने पीने के लिए हाथ फैलाना पड़ेंगे , सो वो हमेशा धर्म के विषय पे चुप बैठता है । उसके लिए खाने पीने का अऔर रहने का बंदोंबस्त हो जाए तो काफी है । क्यूंकी समाज में गरीबी को कुछ विशेष स्थान नहीं है ।

और लोग मंदिर पे मजार पे जा रहे है तो सिर्फ कुछ अपनी आकांक्षा पूर्ण करने के लिए । वो बहुत घबराएँ हुए है , और जब इतना बड़ा जन समुदाय इसमें अटका राहेंगा , तो उनका शोषण करना बहुत आसान होगा। इस वजह से आमिर को आमिर रहना आसान है ।

भारत को अपने धर्म के नाम पर चल रहें अंधश्रद्धा से लढने के लिए बहोत दिककते आती है , अऔर २०२३ में भी है । कभी कभी सत्ता भी इसमें सहायक होती है ।

निश्चित भगवान है , उसे प्रेम कारों , वो हर कण कण में है , और झोला छाप बाबा से बचे रहें ।

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